मनुष्य जाति में जन्म लेते ही जीवन हम सबके लिए अनंत सम्भावनाओं के द्वार खोल देती है। किन्तु ऐसा क्यों है की मुट्ठी भर लोग ही सफल आनंदित जीवन जी पाते है ? ऐसा क्यों है कि संसार में आज इतनी सुख – सुविधाएँ उपलब्ध होने के बाद भी अधिकतर मनुष्य चिंता, विषाद, क्रोध, कुटिलता, क्लेश, राग-द्वेष, अहंकार, वासना इत्यादि से भरा हुआ है। कहीं हमने जीवन की उलटी धार तो नहीं पकड़ ली है ? जीवन की दो धार चलती है, एक नीचे की ओर – पतन, दूसरी ऊपर की ओर – उत्थान। अध्यात्म ही वह उर्धगामी (ऊपर की ओर जाने वाली ) धार है , जो जीवन को धर्म – अर्थ – काम – मोक्ष से सुसज्जित करती है। किस प्रकार मनुष्य अपने जीवन पर पूर्ण नियंत्रण पाकर अपनी असीमित क्षमताओं को उजागर कर सकता है ? किस प्रकार धर्मानुकुल अर्थ, काम, मोक्ष तक की प्राप्ति कर सकता है? किस प्रकार अपने शरीर, मन – बुद्धि पर नियंत्रण पाकर, अपने जीवन को इच्छानुकूल गढ़ सकता है। इसकी युक्ति है अध्यात्म योग। जीवन को रूपांतरित करने का व्यावहारिक विज्ञान है, अध्यात्म। अध्यात्म को यथार्थ रूप में जानकर ही आप इसमें आगे बढ़ सकते है और अपने जीवन को धन्य कर सकते है। मुझे विश्वास है की यह पुस्तक ‘अध्यात्म के स्तम्भ’ आपको जीवन की वृहत दृष्टिकोण प्रदान करेगी एवं सकारात्मक दिशा व गति देने में सहायक होगी।
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